आज हरियाणा में सड़कों ,रेल पटरियों ,नहरों व नालियों के किनारे,शामलात जगहों ,पार्कों, बणी आदि की हरियाली के रूप में छाती ताने खड़ा है -कांग्रेस घास। सरकारी आवासीय कालोनियों ,राजकीय विद्यालयों ,विश्वविद्यालयों और यहाँ तक की सरकारी हस्पतालों के लान की शोभा बन कर,इन्सान को चिढा रहा है-कांग्रेस घास। वैज्ञानिक इस घास को पार्थेनियम कहते है जबकि लोग स्थान,स्वभाव,सहूलियत व राजनीति के हिसाब से इसे कांग्रेस घास,गाजर घास, सफेद टोपी, गाँधी घास, चटक चांदनी ,हरिया आदि नामों से पुकारते हैं।रसायनवेत्ता कहते हैं कि इसके रूंगो में पार्थेनिन नाम का जहरीला रसायन होता है। चिकित्सक कहते हैं कि इस घास के कारण इंसानों में भांत-भांत की खाज व खुजली ,त्वचा का लाल होना ,सुजन और अस्थमा जैसी खतरनाक बीमारियाँ लगती हैं। पशुचिकित्सक कहते हैं कि यह घास पशुओं के लिए भी जहरीला होता है। इसीलिए हरियाणा का पुरा समाज इस हरिया कि हर जगह मौजूदगी से चिंतित एवं इसके खात्मे के लिए प्रयासरत है। गाए-बगाए इसे यांत्रिक तौर पर खत्म करने के अभियान भी चलाए जाते हैं। एट्राजीन, 2-4 डी (सोडियम साल्ट) ,गलाईसोफेट जैसे खरपतवारनाशकों का भी सहारा लिया जाता है। जैविक नियंत्रण के तौर पर रस्ट व अंगमार फफुन्दियाँ भी आजमा कर देखी गई।आस्ट्रेलिया से पौधाहारी कीट जायगोग्रामाँ नामक बीटल मंगा कर छोड़ा गया। केसिया नामक दलहनी खरपतवार भी मुकाबले के लिए दंगल में उतारा गया। पर हैरानी कि बात है कि हरिया हरा ही बना हुआ है।पर आख़िर में मलंग नै मलंग गंगा जी पै ढूंढ़ लिया। कपास की फसल में नवआगन्तुक हानिकारक कीड़े मिलीबग ने प्रबल आश्रयदाता के रूप में कांग्रेस घास को ढूंढ़ लिया। कांग्रेस घास व मिलीबग के अमेरिका से भारत आगमन के तौरतरीकों में मतभेद हो सकते है पर दोनों की मूल निकासी व उद्ग्म स्थान अमेरिका ही है।
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