March 06, 2009

किसान होने का गुमान


















गुमान है , हो ज्ञान भी।

धरती
पै इस भगवान को
शिव तै भोले किसान को।

माणसहारी इस मार्किट का

जन्मजात शाकाहारी कीट
का
कीटाहारी मेरे मित्र कीट का।
तो कुछ बात बने ,कुछ रात ढले।
आपकी भी ,मेरी भी ,सबकी भी !!??!!








1 comment:

  1. Meaningful well kntted words in this poem. Seems congress grass has vanished in flourshing cotton crop.

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