जिला जींद के राजपुरा गावं में सडक के किनारे कांग्रेस घास पर पकडा गया है यह मांसाहारी कीट। यहाँ के लोग इसे कातिल बुगडा कहते हैं।
अंग्रेज इसे असैसिन बग़ कहते हैं। इसके भोजन में मिलीबग व हाण-दमाण के कीट शामील होते है। यह कीट सुन्डियों का जीवन रस भी पीता है। इस कीट को दुसरे जीवों के अण्डों से मॉल चोसन में गुरेज नही होता। कातिल बुगडा अपने मजबूत डंक से शिकार के शरीर में जहरीला रसायन छोड़ता है। इस रसायन में शिकार के शरीर के अंदर के ठोस भाग घुल जाते हैं। जहर में घुले ठोस भागों को यह कीट उसी तरह पी जाता है जिस तरह हम दूध में दलिया घोल कर पी जाते हैं। यह कीट हमारी फसलों की हानिकारक कीटों से सुरक्षा करने में सहायक है। किसानो को इसे बाजार से खरीदने की जरूरत नहीं।बस! जरूरत है तो इसे पहचानने की। इसके अण्डों को पहचानने की। इसके बच्चों को पहचानने की। जरूरत है इसकी हिफाजत की। जरूरत है इसकी वंश वृद्दि के उपाय करने की। कांग्रेस घास पर पाया जानेवाला मिलीबग इसकी वंश वृद्दि में सहायक है।
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