May 09, 2009

कांग्रेस घास पर मिलीबग और सिम्मडो


एक छोटी सी बीटल है ये सिम्मडो। जी, हाँ! जिला जींद के रूपगढ, राजपुरा व निडाना के किसान तो इसे इसी नाम से पुकारते हैं।जबकि कीट वैज्ञानिक इसे सिम्नस(Scymnus spp.) के तौर पर पहचानते हैं। इस बीटल के प्रौढ व गर्ब खाने-पीने के मामले में मांसाहारी होते हैं। इनके भोजन में अल, चुरडे, तेले,सफ़ेद मक्खी,स्केल-कीट, मिलीबग आदि अनेक छोटे-छोटे कीट व इनके अंडे शामिल होते हैं। मिलीबग

एक बहुभक्षी शाकाहारी कीट है। खेतों में कपास की फसल की गैरमौजूदगी में यह मिलीबग अपना निर्वाह कांग्रेस घास, कंघी बूटी, ऊंगा, जंगली चौलाई, आवारा सूरजमुखी, सांठी, धतुरा,कचरी आदि गैरफसली पौधों पर आराम से कर लेता है। इन पौधों पर मिलीबग को किसानों द्वारा अपनी फसल में इस्तेमाल किए गये कीटनाशकों का भी सामना नही करना पड़ता। लेकिन इन्हें यहाँ मांसाहारी कीटों से तो दो-चार होना ही पड़ता है। इन्ही मांसाहारी कीटों में यह सिम्डो और भी सुविधाजनक स्थिति में होती है। क्योंकि इस बीटल के बच्चे रंग-रूप में मिलीबग से मिलते-जुलते होते है। भेड़ की खाल में भेड़िये की मिलीबग की कालोनी में रहकर आराम से मिलीबग के बच्चों को खाते रहते हैं और
मिलीबग को पता तक नहीं चलता। इस बीटल के प्रौढ तो मिलीबग की कालोनियां ढूंढने में लगे रहते है। मिलीबग की कालोनी ढुंन्ढी, इसमें अपने अंडे दिए और अगली पीढी के लिए इनका फर्ज पुरा। इन अण्डों से इस बीटल के बच्चे निकलेंगे। ये बच्चे मिलीबग के बच्चों को चाब कर बेरोक-टोक पलते-बड़ते रहेंगे। जिला जींद के इस गैरफसली-तंत्र जिसका अगुआ आजकल कांग्रेस घास बना हुआ है, पर इस सिम्डो के अलावा कोक्सिनेला, किलोमिनस, क्रिप्टोलेम्स, नेफ़स व ब्रुमस आदि कोक्सिनेलिड कुल की विभिन्न प्रजातियाँ मिलीबग का भक्षण करते हुए किसानों द्वारा देखी गई हैं।

यह बात गौण है कि इनकी रिपोर्ट वैज्ञानिक या गैर-वैज्ञानिक रसालों में हुई है या नही। इस बात का भी कोई मायने नहीं कि इन कीटों कि सबसे पहले रिपोर्ट किसने की। हकीकत तो यह है कि ये आधा दर्जन भर कोक्सिनेलिड परिवार के बीटल अपने बच्चों सम्मेत जींद की धरती पर पिछले चार साल से कपास की फसल को मिलीबग के आक्रमण से बचाने के लिए चुपचाप यहाँ के किसानों की मदद कर रही हैं।



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