March 06, 2009

किसान होने का गुमान


















गुमान है , हो ज्ञान भी।

धरती
पै इस भगवान को
शिव तै भोले किसान को।

माणसहारी इस मार्किट का

जन्मजात शाकाहारी कीट
का
कीटाहारी मेरे मित्र कीट का।
तो कुछ बात बने ,कुछ रात ढले।
आपकी भी ,मेरी भी ,सबकी भी !!??!!








March 05, 2009

कांग्रेस घास पर मिलीबग और जयन्तु

राम का घोड़ा ! ना.. बाबा.. ना। यू तो नेता जी सै, पाछले जन्म की हाथ जोड़न की बाण कौन गई -हथजोडे.की । यू जो भी सै, सै पक्का मांस खाणा या न्यू कहल्यो मांसाहारी कीट। फेर तो यू ना राम का घोड़ा अर ना हथजोडा। यू तो होया नमस्ते करकै मारणिया - नमन्तु या जयन्तु । अंग्रेज तो इसनै प्रेइंग मेँटिस कह्या करे। कहण का के सै। कहण नै तो म्हारे बडे-बूढे भी इसकी अंडथैली नै गादड़ की सुंडी कह्या करै। पाड़ लो नै पुन्ज़ड । छोडो नाम ,नाम में के धरया सै। इसका काम बताओ? काम तो इसका एक्के सै। मांस खाणा अर बालक जामणा। मकडी, मक्खी, मच्छर, अल, तेला, चुरडा, तितली, पतंगा, भंवरा और सुंडी आदि। कुछ फंस ज्याओ , उसे नै रगड़ दे सै। और तो और आगै की होंदे ही अपने मर्द नै भी खा जा सै। सै सही खसमखाणी। खसमखाणी बेशक हो, पर बालक इसने भी बहुत प्यारे लागै सै। इसीलिए तो या रांड अपनी मजबूत अन्डथैली को झाड, कीकर, कैर तथा जांडी आदि कंटीले पौधों की टहनियों पर ही चिपकाया करती है । पर यह क्या ? अबकी बार तो इस नै अन्डथैली कांग्रेस घास की टहनियों पर चिपकाई सै। पता सै क्यूँ ? क्योंकि अन्डथैली से निकलते ही इसके नवजात शिशुओं को कांग्रेस घास पर मिलीबग व उसके बच्चे खाणे को मिलेंगे। अर वो भी भरपेट !!
 












खसमखाणी की अन्डथैली-कांग्रस घास पर

कांग्रेस घास पर मिलीबग का सफाया।

March 02, 2009

कांग्रेसघास पर मिलीबग और दीदड बुगडा

दीदड बुगडा भी एक मांसाहारी कीट है। देखने में काफी छोटा लेकिन काम में उतना ही खोटा। जिला जींद के रूपगढ,राजपुरा व निडाना गाँवों के फसली व कांग्रेस घास समेत गैरफसली पौधों पर पाया गया है। इसके शरीर की लम्बाई तो मुश्किल से इंच का पांचवा या छठा हिस्सा ही होती है मगर इसकी ऑंखें काफी मोटी होती हैं। इसीलिए तो अंग्रेज इसे बिग आइड बग कहते हैं। वैज्ञानिक इसे जियोकोरिस कहते हैं। इसे व इसके बच्चों को जीवनयापन व वंशवृद्दि के लिए दुसरे कीटों के जीवनरस की जरूरत होती है। इनके भोजन में तरुण सुंडियां,विभिन्न सुंडियों के अंडे,चेपे,चुरडे,तेले,मक्खियाँ,शरीर में बराबर साइज के बीटल व बुगडे तथा मिलीबग शामिल होते हैं। पंखविहीन चेपे व मिलीबग की मादा इनके आसानी से शिकार होते हैं। कांग्रेस घास व अन्य गैरफसली पौधों पर मिलीबग का पाया जाना इनके लिए स्वर्ग जैसी स्थिति होती है। एक तो कीटनाशकों की मार से बच जाते हैं ऊपर से खाने को मिलीबग के रूप में भरपूर मात्रा में भोजन मिलता है। दिद्ड बुगडा की पहचान,हिफाजत व वंशवृद्दि किसान के हित में है तथा कीटनाशक कम्पनियों व डीलरों के खिलाफ है। इब मर्जी आपकी!

दीद्ड बुगडा एक अन्य मांसाहारी बीटल का खून चूसते हुए।

















         दीद्ड बुगडा मिलीबग का खून चूसते हुए।






कांग्रेस घास पर मिलीबग और कातिल बुगडा

जिला जींद के राजपुरा गावं में सडक के किनारे कांग्रेस घास पर पकडा गया है यह मांसाहारी कीट। यहाँ के लोग इसे कातिल बुगडा कहते हैं।
अंग्रेज इसे असैसिन बग़ कहते हैं। इसके भोजन में मिलीबग व हाण-दमाण के कीट शामील होते है। यह कीट सुन्डियों का जीवन रस भी पीता है। इस कीट को दुसरे जीवों के अण्डों से मॉल चोसन में गुरेज नही होता। कातिल बुगडा अपने मजबूत डंक से शिकार के शरीर में जहरीला रसायन छोड़ता है। इस रसायन में शिकार के शरीर के अंदर के ठोस भाग घुल जाते हैं। जहर में घुले ठोस भागों को यह कीट उसी तरह पी जाता है जिस तरह हम दूध में दलिया घोल कर पी जाते हैं। यह कीट हमारी फसलों की हानिकारक कीटों से सुरक्षा करने में सहायक है। किसानो को इसे बाजार से खरीदने की जरूरत नहीं।बस! जरूरत है तो इसे पहचानने की। इसके अण्डों को पहचानने की। इसके बच्चों को पहचानने की। जरूरत है इसकी हिफाजत की। जरूरत है इसकी वंश वृद्दि के उपाय करने की। कांग्रेस घास पर पाया जानेवाला मिलीबग इसकी वंश वृद्दि में सहायक है।

March 01, 2009

हरित क्रांति का हरिया:कांग्रेस घास



आज हरियाणा में सड़कों ,रेल पटरियों ,नहरों व नालियों के किनारे,शामलात जगहों ,पार्कों, बणी आदि की हरियाली के रूप में छाती ताने खड़ा है -कांग्रेस घास। सरकारी आवासीय कालोनियों ,राजकीय विद्यालयों ,विश्वविद्यालयों और यहाँ तक की सरकारी हस्पतालों के लान की शोभा बन कर,इन्सान को चिढा रहा है-कांग्रेस घास। वैज्ञानिक इस घास को पार्थेनियम कहते है जबकि लोग स्थान,स्वभाव,सहूलियत व राजनीति के हिसाब से इसे कांग्रेस घास,गाजर घास, सफेद टोपी, गाँधी घास, चटक चांदनी ,हरिया आदि नामों से पुकारते हैं।रसायनवेत्ता कहते हैं कि इसके रूंगो में पार्थेनिन नाम का जहरीला रसायन होता है। चिकित्सक कहते हैं कि इस घास के कारण इंसानों में भांत-भांत की खाज व खुजली ,त्वचा का लाल होना ,सुजन और अस्थमा जैसी खतरनाक बीमारियाँ लगती हैं। पशुचिकित्सक कहते हैं कि यह घास पशुओं के लिए भी जहरीला होता है। इसीलिए हरियाणा का पुरा समाज इस हरिया कि हर जगह मौजूदगी से चिंतित एवं इसके खात्मे के लिए प्रयासरत है। गाए-बगाए इसे यांत्रिक तौर पर खत्म करने के अभियान भी चलाए जाते हैं। एट्राजीन, 2-4 डी (सोडियम साल्ट) ,गलाईसोफेट जैसे खरपतवारनाशकों का भी सहारा लिया जाता है। जैविक नियंत्रण के तौर पर रस्ट व अंगमार फफुन्दियाँ भी आजमा कर देखी गई।आस्ट्रेलिया से पौधाहारी कीट जायगोग्रामाँ नामक बीटल मंगा कर छोड़ा गया। केसिया नामक दलहनी खरपतवार भी मुकाबले के लिए दंगल में उतारा गया। पर हैरानी कि बात है कि हरिया हरा ही बना हुआ है।पर आख़िर में मलंग नै मलंग गंगा जी पै ढूंढ़ लिया। कपास की फसल में नवआगन्तुक हानिकारक कीड़े मिलीबग ने प्रबल आश्रयदाता के रूप में कांग्रेस घास को ढूंढ़ लिया। कांग्रेस घास व मिलीबग के अमेरिका से भारत आगमन के तौरतरीकों में मतभेद हो सकते है पर दोनों की मूल निकासी व उद्ग्म स्थान अमेरिका ही है।

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