August 16, 2009

कांग्रेस घास और मांसाहारी कीट- बिन्दुआ बुगडा


बिन्दुआ बुगडा एक मांसाहारी कीट है जो अपना गुजर-बसर दुसरे कीटों का खून चूस कर करता है। कांग्रेस घास पर यह कीट दुसरे कीटों की तलाश में ही आया है। कांग्रेस ग्रास के पौधों पर इसे मिलीबग, मिल्क-वीड बग़ व जाय्गोग्राम्मा बीटल आदि शाकाहारी कीट व इनके शिशु व अंडे मिल सकते है। इन शाकाहारी कीटों के अलावा कीटाहारी कीट भी मिल सकते है। इन सभी मध्यम आकर के कीटों का खून चूस कर ही बिन्दुआ बुगडा व इसके बच्चों का कांग्रेस घास पर गुजरा हो पाता है।
स्टिंक बग़ की श्रेणी में शामिल इस बिन्दुआ बुगडा को अंग्रेज "two spotted bug" कहते हैं। कीट वैज्ञानिक इसे द्विपदी प्रणाली के मुताबिक "Perillus bioculatus" कहते हैं। इस बुगडे के परिवार का नाम "Pentatomidae" है।
इन बिन्दुआ बुगडों का शरीर चौड़ा व शिल्ड्नुमा होता है। शरीर कि लम्बाई पौन इंच तक होती है। इंसानों द्वारा छेड़े जाने पर ये बिन्दुआ बुगडे बेचैन करने वाली तीक्ष्ण गंध छोड़ते हैं। इस गंध रूपी हथियार को ये कीट दुसरे कीटों से अपना बचाव करने में भी इस्तेमाल करते हैं। आलू की फसल को नुकशान पहुचने वाली कोलोराडो बीटल के तो ग्राहक होते है ये बिन्दुआ बुगडे। इसी जानकारी का फायदा उठाकर कीटनाशी उद्योग द्वारा इन बुगडों को भी जैविक-नियंत्रण के नाम पर बेचा जाने लगा है। साधारण से साधारण जानकारी को भी मुनाफे में तब्दील करना कोई इनसे सीखे।











July 06, 2009

कांग्रेस घास, मिलीबग व परजीवी सम्भीरकाएं

कांग्रेस घास, जी हाँ! वही कांग्रेस घास जिसे कभी ख़त्म करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों व उनकी चहेती बीटल जाय्गोग्रामा ने ताणे तक तुडवा लिए थे मगर पार नहीं पड़ी थी। पर समय सदा एकसा नही रहता। कपास की साधारण किस्मों की जगह बी.टी. हाइब्रिडों का प्रचलन हुआ। इसके साथ ही कपास की फसल में फिनोकोक्स सोलेनोप्सिस नाम का मिलीबग भस्मासुर बन कर सामने आया और देखते-देखते ही कांग्रेस घास के पौधों पर भी छा गया। संयोग देखिये, अमेरिकन कपास, कांग्रेस घास व मिलीबग का निकासी स्थल एक ही है। हिंदुस्तान में आते ही मिलीबग को कांग्रेस घास के रूप में पूर्व परिचित, एक सशक्त वैकल्पिक आश्रयदाता मिल गया। किसानों के घातक कीटनाशकों से पुरा बचाव व सारे साल अपने व बच्चों के लिए भोजन का पुरा जुगाड़। पर प्रकृति की प्रक्रियाएं इतनी सीधी व सरल नही होती। बल्कि इनमेँ तो हर जगह हर पल द्वंद्व रहता है। प्रकृति में सुस्थापित भोजन श्रृंख्ला की कोई भी कड़ी इतनी कमजोर नही होतीं कि जी चाहे वही तोड़ दे। फ़िर इस मिलीबग कि तो बिसात ही क्या जिसकी मादा पंखविहीन हो तथा अन्डे थैली में देती हो। जिला जींद की परिस्थितियों में ही सात किस्म की लेडी बिटलों, पांच किस्म की मकडियों व पांच किस्म के बुगडों आदि परभक्षियों के अलावा तीन किस्म की परजीवी सम्भीरकाओं ने मिलीबग को कांग्रेस घास पर ढूंढ़ निकाला। यहाँ स्थानीय परिस्थितियों में मिलीबग को परजीव्याभीत करने वाली अंगीरा, जंगीरा व फंगीरा नामक तीन सम्भीरकाएं पाई गई है। इनमेँ से अंगीरा ने तो कांग्रेस घास के एक पौधे पर मिलीबग की पुरी आबादी को ही परजीव्याभीत कर दिया है। इस तरह की घटना कम ही देखने में आती है। मिलीबग नियंत्रण के लिए प्रकृति की तरफ़ से कपास उत्पादक किसानों के लिए एनासिय्स नामक सम्भीरका एक गजब का तोहफा है। भीरडनूमा महीन सा यह जन्नोर आकर में तो बामुश्किल एक-दो मिलीमीटर लंबा ही होता है। एनासिय्स की प्रौढ़ मादा अपने जीवनकाल में सैकडों अंडे देती है पर एक मिलीबग के शरीर में एक ही अंडा देती है। इस तरह से एक एनासिय्स सैकडों मिलिबगों को परजीव्याभीत करने का मादा रखती है। मिलीबग के शरीर में एनासिय्स को अंडे से पूर्ण प्रौढ़ विकसित होने में तकरीबन 15 दिन का समय लगता है। इसीलिए तो एनासिय्स को अंडे देते वक्त मिलीबग की ऊमर का ध्यान रखना पड़ता है। गलती से ज्यादा छोटे मिलीबग में अंडा दिया गया तो प्रयाप्त भोजन के आभाव में मिलीबग के साथ-साथ एनासिय्स की भी मौत हो जाती है। खुदा न खास्ता एनासिय्स ने अपना अंडा एक इसे ऊमर दराज मिलीबग के शरीर में दे दिया जिसकी जिन्दगी दस दिन की भी न रह रही हो तो भी एनासिय्स के पूर्ण विकसित होने से पहले ही मिलीबग की स्वाभाविक मौत हो जायेगी। परिणाम स्वरूप एनासिय्स की भी मौत हो जायेगी। इसीलिए तो एनासिय्स का पुरा जोर रहता है कि अंडा उस मिलीबग के शरीर में दिया जाए जिसकी जिन्दगी के अभी कम से कम 15 दिन जरुए बच रहे हों। अंडा देने के लिए सही मिलीबग के चुनाव पर ही एनासिय्स की वंश वृध्दि की सफलता निर्भर करती है। मिलीबग के शरीर में अंड विस्फोटन के बाद ज्योंही एनासिय्स का शिशु मिलीबग को अंदर से खाना शुरू करता है, मिलीबग गंजा होना शुरू हो जाता है। इसका रंग भी लाल सा भूरा होना शुरू हो जाता है। मिलीबग का पाउडर उड़ना व इसका रंग लाल सा भूरा होना इस बात की निशानी है कि मिलीबग के पेट में एनासिय्स का बच्चा पल रहा है। मिलीबग को अंदर से खाते रह कर एक दिन एनासिय्स का किशोर मिलीबग के अंदर ही प्युपेसन कर लेता है। फ़िर एक दिन पूर्ण प्रौढ़ के रूप में विकसित होकर मिलीबग के शरीर से बाहर आने के लिए गोल सुराख़ करेगा। इस सुराख़ से एनासिय्स अपना स्वतन्त्र प्रौढिय जीवन जीने के लिए मिलीबग के शरीर से बहर निकलेगा। और इस प्रक्रिया में मिलीबग को मिलती है मौत तथा अब वह रह जाता सिर्फ़ खाली खोखा। यहाँ एनासिय्स यानि कि अंगीरा के जीवन कि विभिन्न अवस्थाओं के फोटों दी गई है। कांग्रेस घास सम्मेत विभिन्न गैरफसली पौधे जो मिलीबग के लिए आश्रयदाता है, एनासिय्स कि वंश वृध्दि के लिए भी वरदान है क्योंकि इन्हे इन पौधों पर अपनी वंश वृध्दि के लिए मिलीबग बहुतायत में उपलब्ध हो जाता है।














June 03, 2009

कांग्रेस घास पर मिलीबग और चपरो


मिलीबग व् चेपे की कुशल शिकारी के रूप में जिला जींद की धरती पर नौ किस्म की बुगडी पायी गयी है. कोक्सीनेलिड्स कुल की इन बुगड़ीयों के प्रौढ़ भी मांसाहारी अर् इनके बच्चे(GRUB ) भी मांसाहारी. गजब की किसान मित्र है ये लेडी बीटल.। यूरोपियन लोग इन्हें लेडिबीटल या लेडीबग के नाम से पुकारते हैं । इनके पंखों की चमक चूड़ियों जैसी होने के कारण स्थानीय लोगों में कुछ इन्हें मनयारी कहते हैं जबकि अन्य इनके पंखों का रंग जोगिया होने के कारण इन्हें जोगन के नाम से पुकारते हैं. कवि महोदय इन कीटों को सोन-पंखी भंवरे के रूप में अलंकृत करते है. निडाना गावं की महिला किसानों ने भी अपनी यादगारी सुविधा एवं पहचान सुगमता के लिए इन नौ लेडी बीटलों के नाम लपरो(प्रौढ़, डिम्बक),सपरो(प्रौढ़), चपरो(प्रौढ़), रेपरो(प्रौढ़), हाफ्लो(गर्ब}, ब्रह्मों(प्रौढ़), नेफड़ो(प्रौढ़), सिम्मड़ो(गर्ब) और क्रिप्टो(गर्ब). इन सभी लेडी बीटलों के बालिग व शिशु जन्मजात मांसाहारी कीट होते हैं । इनके भोजन में कीटों के अंडे ,तरुण सुंडियां ,अल या चेपा ,मिलीबग ,चुरडाः ,तेला ,सफ़ेद मक्खी,फुदका आदि अनेक हानिकारक कीट शामिल होते हैं । जिन्हें ये बड़े चाव से खाते हैं । हमारे खेतों में इनकी उपस्तिथि ,कीटनाशकों पर होने वाले खर्च में कटोती करवा सकती है । कीटनाशक चाहे रासायनिक हो या फिर बी.टी.के रूप में जैविक. हम इन लेडी बीटलों को उम्दा किस्म के प्राकृतिक कीटनाशी भी कह सकते हैं क्योंकि ये कीटों को खा कार उनका सफाया करते हैं. यानी कि हमारी फसलों का कीड़ों से बचाव मुफ्त में ही करते हैं जबकि कीटनाशकों पर इसी काम के लिए हमें पैसा खर्च करना पडता है। अतः हम इनकी सही पहचान ,हिफाजत व वंशवृद्धि कर जहाँ खेती के खर्च को घटा सकते हैं वहीं कीटनाशकों के दुष्प्रभावों से मानव स्वस्थ की रक्षा कर बहुत बड़ी समाज सेवा भी कर सकते हैं। इन्हीं में से
निडाना की महिला किसानों ने इस गावं की फसलों में पाई गयी इन नौ किस्म की लेडी बीटलों की न केवल अच्छी तरह से पहचान ही की है बल्कि इन्होनें तो लेडी बीटलों के संक्षिप्त इतिहास व् क्रियाक्लापों पर एक गीत भी लिख डाला. इस गीत को वे विभिन्न अवसरों पर गाती भी हैं.
राजपुरा गावं के भू.पु.सरपंच श्री बलवान सिंह लोहान के नेतृत्त्व में महेंद्र, प्रकाश, नरेश, भीरा आदि किसानों ने काले के खेत में बी.टी.कपास की फसल पर आये एक नये कीड़े मिलीबग को चबाते हुए एक लपरो को मौके पर पकड़ा था व् इसकी वीडियो तैयार की थी. कीड़ों का कीड़ों द्वारा प्राकृतिक नियंत्रण के इस दृश्य को देखकर सभी किसान हैरान थे.

May 09, 2009

कांग्रेस घास पर मिलीबग और कोक्सिनेल्ला बीटल

जिला जींद में तो शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जिसने कभी भी खेत में बरसीम की कटाई की हो और इस कीट के दर्शन न किए हों। बरसीम, सरसों, कपास, धान व गेहूं आदि कोई ही फसलतंत्र होगा जिसमें ये बीटल अपनी उपस्थिति दर्ज न करवाती हों। ये कीट सात्विक हैं या निरामिषी, ये यहाँ के लोगों को मालूम है या नहीं, ये हमें भी मालूम नही। लेकिन यह सत्य है कि इस लेडी बीटल के प्रौढ़ व किशोर दोनों ही मांसाहारी होते हैं। अल व मिलीबग को बड़े चाव से खाते हैं। इनके भोजन में छोटी-छोटी सुंडियां व अंडे भी शामिल होते हैं।


कांग्रेस घास पर मिलीबग का पाया जाना इनके लिए चिकित्सकों के सीजन से कम नहीं होता। एक तो किसानो द्वारा फसलों में किए जाने वाले कीटनासकों की मार से बच जाते हैं ऊपर से पेट भरने के लिए मिलीबग व उसके बच्चे खाने को मिल जाते है। ना भोजन की किल्लत और ना ही आवास का झंझट।







 कोक्सिनेल्ला  प्रौढ नाश्ते में मिलीबग को चाबते हुए। जायेगी।


अपना वंश कौन नहीं चलाना चाहता?






















कोक्सिनेल्ला का किशोर मिलीबग की थैली में बैठे बच्चों के चक्कर में।
 






























कांग्रेस घास पर मिलीबग और सिम्मडो


एक छोटी सी बीटल है ये सिम्मडो। जी, हाँ! जिला जींद के रूपगढ, राजपुरा व निडाना के किसान तो इसे इसी नाम से पुकारते हैं।जबकि कीट वैज्ञानिक इसे सिम्नस(Scymnus spp.) के तौर पर पहचानते हैं। इस बीटल के प्रौढ व गर्ब खाने-पीने के मामले में मांसाहारी होते हैं। इनके भोजन में अल, चुरडे, तेले,सफ़ेद मक्खी,स्केल-कीट, मिलीबग आदि अनेक छोटे-छोटे कीट व इनके अंडे शामिल होते हैं। मिलीबग

एक बहुभक्षी शाकाहारी कीट है। खेतों में कपास की फसल की गैरमौजूदगी में यह मिलीबग अपना निर्वाह कांग्रेस घास, कंघी बूटी, ऊंगा, जंगली चौलाई, आवारा सूरजमुखी, सांठी, धतुरा,कचरी आदि गैरफसली पौधों पर आराम से कर लेता है। इन पौधों पर मिलीबग को किसानों द्वारा अपनी फसल में इस्तेमाल किए गये कीटनाशकों का भी सामना नही करना पड़ता। लेकिन इन्हें यहाँ मांसाहारी कीटों से तो दो-चार होना ही पड़ता है। इन्ही मांसाहारी कीटों में यह सिम्डो और भी सुविधाजनक स्थिति में होती है। क्योंकि इस बीटल के बच्चे रंग-रूप में मिलीबग से मिलते-जुलते होते है। भेड़ की खाल में भेड़िये की मिलीबग की कालोनी में रहकर आराम से मिलीबग के बच्चों को खाते रहते हैं और
मिलीबग को पता तक नहीं चलता। इस बीटल के प्रौढ तो मिलीबग की कालोनियां ढूंढने में लगे रहते है। मिलीबग की कालोनी ढुंन्ढी, इसमें अपने अंडे दिए और अगली पीढी के लिए इनका फर्ज पुरा। इन अण्डों से इस बीटल के बच्चे निकलेंगे। ये बच्चे मिलीबग के बच्चों को चाब कर बेरोक-टोक पलते-बड़ते रहेंगे। जिला जींद के इस गैरफसली-तंत्र जिसका अगुआ आजकल कांग्रेस घास बना हुआ है, पर इस सिम्डो के अलावा कोक्सिनेला, किलोमिनस, क्रिप्टोलेम्स, नेफ़स व ब्रुमस आदि कोक्सिनेलिड कुल की विभिन्न प्रजातियाँ मिलीबग का भक्षण करते हुए किसानों द्वारा देखी गई हैं।

यह बात गौण है कि इनकी रिपोर्ट वैज्ञानिक या गैर-वैज्ञानिक रसालों में हुई है या नही। इस बात का भी कोई मायने नहीं कि इन कीटों कि सबसे पहले रिपोर्ट किसने की। हकीकत तो यह है कि ये आधा दर्जन भर कोक्सिनेलिड परिवार के बीटल अपने बच्चों सम्मेत जींद की धरती पर पिछले चार साल से कपास की फसल को मिलीबग के आक्रमण से बचाने के लिए चुपचाप यहाँ के किसानों की मदद कर रही हैं।



May 06, 2009

कांग्रेस घास पर मिलीबग की अन्डेदानियाँ

कांग्रेस घास पर मिलीबग की इन अन्डेदानियों से इसके बच्चों को कौन चुरा ले गया ?Posted by Picasa

May 01, 2009

कांग्रेस घास और ब्रुमस बीटल

हाफलो, जी हाँ ! जिला जींद में निडाना, रूपगढ व राजपुरा के किसान इस छोटी सी बीटल को इसी नाम से पुकारते हैं क्योंकि इसके प्रौढ तथा गर्ब दोनों ही हाफले मार-मार कर मिलीबग के शिशुओं को खाते हैं। जबकि सांईसदान इसे कोक्सिनेलिड कुल की ब्रुमस कहते है। इस बीटल के प्रौढ व गर्ब निरामिषि होते हैं। अपना पेट भरने के लिए, इन्हें सारा दिन दुसरे कीट या उनके अंडे ढुन्ढने में ही गुजारना पड़ता है। बहुत सारे कीट या अंडे एक ही जगह खाने को मिल जाए तो, इनके ठाठ हो जाते हैं। ऐसा अवसर, इन्हें मिलीबग के कारण ही मिल पाता है क्योंकि मिलीबग की प्रौढ मादा हर ब्यांत में सैंकडों अंडे एक थैली में देती है। सुरक्षा उपायों के कारण, मिलीबग की मादा इस थैली को अपनी छाती के नीचे रखती है। मिलीबग का पालन-पोषण व प्रजनन कांग्रेस घास व अन्य गैरफसली पौधों पर होना किसानों के लिए अगले जन्म का सचा सौदा बेशक ना हो पर वर्त्तमान में फायदे का सौदा तो जरुर होता है। कांग्रेस घास मिलीबग के लिए कुदरती तौर पर सुरक्षित ठिकाना भी होगा तथा भोजन का स्रोत भी। इसका मतलब मिलीबग के लिए लधने-बढ़ने के भरपूर अवसर। परन्तु जिस तरह से घी मक्खी का बैरी होता है ठीक उसी तरह से जी का जी बैरी होता है। अतः कांग्रेस घास पर मिलीबग का फलना-फुलना मांसाहारी कीटों के लिए सुनहरी मौका होगा और उन्हें भी जीवनयापन व वंशवृद्धि का सुलभ स्रोत मिल जाता है।इस तरह से स्थापित हो जाती है प्रकृति में एक भोजन श्रंख्ला। बस आवश्यकता है तो किसानों द्वारा इस प्रक्रिया को समझने की तथा कीट साक्षरता के नवसाक्षर होने की अन्यथा इस कलयुग में किसी दिन हमारा कृषि-प्रजापति ऑस्ट्रेलिया या जापान से इन बीटलों की अटैची भर कर दिल्ली के हवाई अड्डे पर आसमान से उतरेगा। देश भर के कीट-शंकरों को दिल्ली में फालन करेगा। बी.टी.कपास के भस्मासुर इस मिलीबग से किसानी को मुक्ति दिलवाने के लिए इन बीटलों को अचूक अस्त्र के रूप में उन्हें सौपेगा। जैविक कीट नियंतरण की प्रयोगशालाएं स्थापित होंगीं और शुरू हो जायेंगे इस बीटल को प्रयोगशालाओं में पालने के अनुसंधान। इनके सहारे शुरू हो जायेगी एक नई श्रंखला इन कीट-शंकरों के लिए वेतन-वृद्धियों की, व्यक्तिक-पदोन्नतियों की तथा प्रतीष्ठ पदों को प्राप्त करने की। इन प्रयोगशालाओं में इस बीटल को लेकर धूम-दडाके से बहुअयामी खोजें शुरू होंगीं। इस बीटल के पोषण, प्रजनन व स्थानीय प्रतिक्रिया पर एक या दो सांखिकीय-स्टार लगे ढेरों पेपर छापे जायेंगें। इस प्रक्रिया में, ये मांसाहारी बीटल कीट-शंकरों द्वारा परोसे गए भोजन व प्रयोगशालाओं की सुविधाओं के आदी हो जाते हैं। और फ़िर ये बीटल व परियोजनाए किंतु-परन्तु व समय के साथ दम तोड़ जाती हैं।पर किसानो के खेतों में कहीं नज़र नहीं आती। इसलिए कपास की फसल में इस मिलीबग रुपी चक्रब्यूह को तोड़ने के लिए किसानी अभिमन्यु को ही गुर सिखने होंगें। इसके लिए किसानों को करनी होगी स्थानीय हानिकारक व लाभदायक कीटों की पहचान। जुटानी होगी इनकी भोजन विविधता व क्षमता की जानकारी। जुटानी होगी इनकी प्रजनन क्षमता की

जानकारी।  जुटानी होगी स्थानीय भोजन श्रंखला की जानकारी। 
बाज़ार की इस चक्काचौन्द में इन कीट-शंकरों से कीट-संकट से मुक्ति की आस तो बहुत दूर की बात है यहाँ तो सतयुग में भी पारबती की एक दुखिया किसान के दुःखहरण की प्रार्थना पर शंकर जी ने यह नोट चढा दिया था कि किस-किस के दुःख दूर करैगी, या दुनिया दुखी फिरै रानी।

April 17, 2009

कांग्रेस घास पर मिलीबग और क्रिप्टोलेम्स

चितंग नहर की गोद में बसा है, जिला जींद का राजपुरा गाँव। जी हाँ। वही चितंग जिसे कभी फिरोज़ साह तुगलक ने बनवाया था। नहरी पानी की उपलब्धता का किसानों की सम्पनता से रिश्ता चोली दामन वाला होता है। इसीलिए तो पुराने समय से ही इस इलाका के किसानों को चितंग के चादरे वाले लोग कहा जाता है। यह चादरा, यहाँ के किसानों की समृद्धि का प्रतीक था। अब इस गाँव में किसानों के कन्धों पर यह चादरा तो कहीं नजर नहीं आता। पर किसानां का ब्यौंत अर् स्याणपत आज भी दूर से ही नजर आती है। प्रकृति के खेल देखो, इस गाँव के जाये नै तो हरियाणा में राज कर राख्या सै जबकि इस गाँव से निकलने वाली सभी सड़कों के किनारों पर एक अमेरिका के जाये का साम्राज्य है। मिर्चपुर को जाने वाली सड़क पर भी हम इस महानुभाव के दर्शन किए बगैर काले के खेत में नहीं पहुँच सकते। यहाँ सड़क के किनारे ही बिजली के ट्यूबवैल का कोठडा है, जामुन व जमोवै के पेड़ हैं। इन्ही पेड़ों में से एक की गहरी छाया में खेत पाठशाला की शुरुवात हो रही है। दिन है 5 जून, 2008 का, बार है वीरवार व समय है क़लेवार का। पाठशाला के छात्रों के रूप में जहाँ एक तरफ़ किसान यूनियन की झलां में को लिकडे हुए महेंद्र, प्रकाश, धर्मपाल व भू0 पु0 सरपंच बलवान जिसे साकटे किसान थे वहीं बाबु के भारी वजूद तले दबे शरीफ व शरमाऊ अजमेर जिसे युवा किसान भी थे। भैंसों के पुन्ज़ड ठा-ठा कै दूध का अंदाजा लाने वाले भीरे बरगे किसान भी थे। विभाग कि तरफ़ से कृषि विकास अधिकारी व खंड अधिकारी, दोनों कोहलै म्हं के सांगवान थे। दिन के ग्यारह बजे सी, एक छैल-छींट युवा किसान ने अपनी हीरो-होंडा वहाँ आकर रोकी। मिलीबग से लथपथ कांग्रेस घास के दो पौधें सबके बीच फेंकते हुए बोला,"थाम आडै कैम्प लाए जावो। उडे इस बीमारी नै मेरी बाडी का नाश कर दिया। "
कई जनें एक स्वर में विशेषज्ञों की तरह टूट कर पड़े, "कांग्रेस घास नै उखाड़ कर मिलीबग सम्मेत मिट्टी में दबा दे। बांस रहेगा, ना बाँसुरी।"
या सुन कै खूंटा ठोक पै भी चुप नहीं रहा गया, "दोनों को मिट्टी में क्यों दबा दे?"
इस खींचतान में एंडी विशेषज्ञों की एक नई सलाह सामने आई, "कांग्रेस घास नै उखाड़ कर मिलीबग सम्मेत जलाओ और फेर इसने मिट्टी में दाबो।"
इब भी खूंटा ठोक की सवालिया कड़छी(?) यूँ ही उपर देख, इन विशेषज्ञों से रहा नहीं गया, "तू तो सदा ऐ उल्टे बीन्डे की तरफ़ तै पकड़ा करै!"
"कांग्रेस घास अर इस मिलीबग के साथ कुछ भी करने से पहले, हमें इस घास व कीड़े की परिस्थितियों का पूर्वावलोकन व बारीकी से निरिक्षण करना चाहिए।" - खूंटा ठोक नै भी बात घुमाई।

घाम भी लहू चलान आला था अर टेम भी भला ना था। सिकर दोपहरी। फेर भी आज सभी नै सामूहिक रूप से लिख पाडण का कड़ा फैसला ले लिया। तीन समूहों में बंट कर तीन जगह पर कांग्रेस घास पर मिलीबग का अध्यन शुरू किया। सवा घंटा किसी भी ग्रुप में किसी को भी मिलीबग व चिट्टियों के सिवाय कुछ नज़र नहीं आया। फ़िर अचानक धर्मपाल चिल्लाया, "देखियो, यू तो मिलीबग कोन्या दीखता। इसके ये सफ़ेद मोम्मिया तंतु तो मिलीबग के मुकाबले बहुत लंबे सै। इसकी चाल देखो। मिलीबग तो सात जन्म में भी इतना तेज़ कोन्या चलै। यु के? यु तो थोड़ा सा करेलदें ही गंजा होगा।"
मुहँ आगे तै ढाट्ठा हटा कर, महेंद्र थोड़ा सा शर्माते हुए कहने लगा, "मरेब्ट्टे का एक आध पै तो यु उल्टा बींडा भी कसुत फिट बैठ जा सै। "
भीरे नै टेक में टेक मिलाई, "खूंटा ठोकू पौधानाथ जी, इब क्यूँ जमा मोनी बाबा बनगे। कुछ तो बताओ।"
" के बोलू भीरे, उतेजना अर् आश्चर्य राहु केतु बन मेरे दिमाग पै बैठे सै।", खूंटा ठोक नै धीरे धीरे बात सरकाना शुरू किया। "थाम नै बेरया सै यु के ढुँढ दिया। यु छोटा सा कीड़ा तो Cryptolaemus बीटल सै। थोक के भाव मिलीबग को खाने वाला। इसे आस्ट्रेलियन बीटल भी कहते है। पैदा होने से लेकर मरने तक यह कीड़ा, 2300 से 5000 तक मिलीबग खा जाता है। यु देखो इसका प्रौढ रहा।
सन्तरी से सिर आला काला मिराड। बस तीन-चार मिलीमीटर लंबा। इसकी मादा आगै की होण लाग रही सै। या चार सौ के आस-पास अंडे देगी। या अपने अंडे मिलीबग के अण्डों में रखेगी ताकि इसके नवजात शिशुवों को पैदा होते ही भर पेट खाना मिलीबग के बच्चों के रूप में मिल जाए। प्रकृति के खेल देखो- कांग्रेस घास मानव के लिए प्रलयकारी तथा मिलीबग के लिए पालनहार। मिलीबग कपास के लिए प्रलयकारी तथा क्रिप्टोलैमस बीटल के लिए पालनहार। " और इस तरह से राजपुरा,रूपगढ व निडाना के किसानो ने यहाँ की परिस्थितियों में कांग्रेस घास पर सात किस्म की मांसाहारी बीटल्स ढूंड ली जो मिलीबग का सफाया करती है। उनकी जानकारी अगले अंकों में।




March 06, 2009

किसान होने का गुमान


















गुमान है , हो ज्ञान भी।

धरती
पै इस भगवान को
शिव तै भोले किसान को।

माणसहारी इस मार्किट का

जन्मजात शाकाहारी कीट
का
कीटाहारी मेरे मित्र कीट का।
तो कुछ बात बने ,कुछ रात ढले।
आपकी भी ,मेरी भी ,सबकी भी !!??!!








March 05, 2009

कांग्रेस घास पर मिलीबग और जयन्तु

राम का घोड़ा ! ना.. बाबा.. ना। यू तो नेता जी सै, पाछले जन्म की हाथ जोड़न की बाण कौन गई -हथजोडे.की । यू जो भी सै, सै पक्का मांस खाणा या न्यू कहल्यो मांसाहारी कीट। फेर तो यू ना राम का घोड़ा अर ना हथजोडा। यू तो होया नमस्ते करकै मारणिया - नमन्तु या जयन्तु । अंग्रेज तो इसनै प्रेइंग मेँटिस कह्या करे। कहण का के सै। कहण नै तो म्हारे बडे-बूढे भी इसकी अंडथैली नै गादड़ की सुंडी कह्या करै। पाड़ लो नै पुन्ज़ड । छोडो नाम ,नाम में के धरया सै। इसका काम बताओ? काम तो इसका एक्के सै। मांस खाणा अर बालक जामणा। मकडी, मक्खी, मच्छर, अल, तेला, चुरडा, तितली, पतंगा, भंवरा और सुंडी आदि। कुछ फंस ज्याओ , उसे नै रगड़ दे सै। और तो और आगै की होंदे ही अपने मर्द नै भी खा जा सै। सै सही खसमखाणी। खसमखाणी बेशक हो, पर बालक इसने भी बहुत प्यारे लागै सै। इसीलिए तो या रांड अपनी मजबूत अन्डथैली को झाड, कीकर, कैर तथा जांडी आदि कंटीले पौधों की टहनियों पर ही चिपकाया करती है । पर यह क्या ? अबकी बार तो इस नै अन्डथैली कांग्रेस घास की टहनियों पर चिपकाई सै। पता सै क्यूँ ? क्योंकि अन्डथैली से निकलते ही इसके नवजात शिशुओं को कांग्रेस घास पर मिलीबग व उसके बच्चे खाणे को मिलेंगे। अर वो भी भरपेट !!
 












खसमखाणी की अन्डथैली-कांग्रस घास पर

कांग्रेस घास पर मिलीबग का सफाया।

March 02, 2009

कांग्रेसघास पर मिलीबग और दीदड बुगडा

दीदड बुगडा भी एक मांसाहारी कीट है। देखने में काफी छोटा लेकिन काम में उतना ही खोटा। जिला जींद के रूपगढ,राजपुरा व निडाना गाँवों के फसली व कांग्रेस घास समेत गैरफसली पौधों पर पाया गया है। इसके शरीर की लम्बाई तो मुश्किल से इंच का पांचवा या छठा हिस्सा ही होती है मगर इसकी ऑंखें काफी मोटी होती हैं। इसीलिए तो अंग्रेज इसे बिग आइड बग कहते हैं। वैज्ञानिक इसे जियोकोरिस कहते हैं। इसे व इसके बच्चों को जीवनयापन व वंशवृद्दि के लिए दुसरे कीटों के जीवनरस की जरूरत होती है। इनके भोजन में तरुण सुंडियां,विभिन्न सुंडियों के अंडे,चेपे,चुरडे,तेले,मक्खियाँ,शरीर में बराबर साइज के बीटल व बुगडे तथा मिलीबग शामिल होते हैं। पंखविहीन चेपे व मिलीबग की मादा इनके आसानी से शिकार होते हैं। कांग्रेस घास व अन्य गैरफसली पौधों पर मिलीबग का पाया जाना इनके लिए स्वर्ग जैसी स्थिति होती है। एक तो कीटनाशकों की मार से बच जाते हैं ऊपर से खाने को मिलीबग के रूप में भरपूर मात्रा में भोजन मिलता है। दिद्ड बुगडा की पहचान,हिफाजत व वंशवृद्दि किसान के हित में है तथा कीटनाशक कम्पनियों व डीलरों के खिलाफ है। इब मर्जी आपकी!

दीद्ड बुगडा एक अन्य मांसाहारी बीटल का खून चूसते हुए।

















         दीद्ड बुगडा मिलीबग का खून चूसते हुए।






कांग्रेस घास पर मिलीबग और कातिल बुगडा

जिला जींद के राजपुरा गावं में सडक के किनारे कांग्रेस घास पर पकडा गया है यह मांसाहारी कीट। यहाँ के लोग इसे कातिल बुगडा कहते हैं।
अंग्रेज इसे असैसिन बग़ कहते हैं। इसके भोजन में मिलीबग व हाण-दमाण के कीट शामील होते है। यह कीट सुन्डियों का जीवन रस भी पीता है। इस कीट को दुसरे जीवों के अण्डों से मॉल चोसन में गुरेज नही होता। कातिल बुगडा अपने मजबूत डंक से शिकार के शरीर में जहरीला रसायन छोड़ता है। इस रसायन में शिकार के शरीर के अंदर के ठोस भाग घुल जाते हैं। जहर में घुले ठोस भागों को यह कीट उसी तरह पी जाता है जिस तरह हम दूध में दलिया घोल कर पी जाते हैं। यह कीट हमारी फसलों की हानिकारक कीटों से सुरक्षा करने में सहायक है। किसानो को इसे बाजार से खरीदने की जरूरत नहीं।बस! जरूरत है तो इसे पहचानने की। इसके अण्डों को पहचानने की। इसके बच्चों को पहचानने की। जरूरत है इसकी हिफाजत की। जरूरत है इसकी वंश वृद्दि के उपाय करने की। कांग्रेस घास पर पाया जानेवाला मिलीबग इसकी वंश वृद्दि में सहायक है।

March 01, 2009

हरित क्रांति का हरिया:कांग्रेस घास



आज हरियाणा में सड़कों ,रेल पटरियों ,नहरों व नालियों के किनारे,शामलात जगहों ,पार्कों, बणी आदि की हरियाली के रूप में छाती ताने खड़ा है -कांग्रेस घास। सरकारी आवासीय कालोनियों ,राजकीय विद्यालयों ,विश्वविद्यालयों और यहाँ तक की सरकारी हस्पतालों के लान की शोभा बन कर,इन्सान को चिढा रहा है-कांग्रेस घास। वैज्ञानिक इस घास को पार्थेनियम कहते है जबकि लोग स्थान,स्वभाव,सहूलियत व राजनीति के हिसाब से इसे कांग्रेस घास,गाजर घास, सफेद टोपी, गाँधी घास, चटक चांदनी ,हरिया आदि नामों से पुकारते हैं।रसायनवेत्ता कहते हैं कि इसके रूंगो में पार्थेनिन नाम का जहरीला रसायन होता है। चिकित्सक कहते हैं कि इस घास के कारण इंसानों में भांत-भांत की खाज व खुजली ,त्वचा का लाल होना ,सुजन और अस्थमा जैसी खतरनाक बीमारियाँ लगती हैं। पशुचिकित्सक कहते हैं कि यह घास पशुओं के लिए भी जहरीला होता है। इसीलिए हरियाणा का पुरा समाज इस हरिया कि हर जगह मौजूदगी से चिंतित एवं इसके खात्मे के लिए प्रयासरत है। गाए-बगाए इसे यांत्रिक तौर पर खत्म करने के अभियान भी चलाए जाते हैं। एट्राजीन, 2-4 डी (सोडियम साल्ट) ,गलाईसोफेट जैसे खरपतवारनाशकों का भी सहारा लिया जाता है। जैविक नियंत्रण के तौर पर रस्ट व अंगमार फफुन्दियाँ भी आजमा कर देखी गई।आस्ट्रेलिया से पौधाहारी कीट जायगोग्रामाँ नामक बीटल मंगा कर छोड़ा गया। केसिया नामक दलहनी खरपतवार भी मुकाबले के लिए दंगल में उतारा गया। पर हैरानी कि बात है कि हरिया हरा ही बना हुआ है।पर आख़िर में मलंग नै मलंग गंगा जी पै ढूंढ़ लिया। कपास की फसल में नवआगन्तुक हानिकारक कीड़े मिलीबग ने प्रबल आश्रयदाता के रूप में कांग्रेस घास को ढूंढ़ लिया। कांग्रेस घास व मिलीबग के अमेरिका से भारत आगमन के तौरतरीकों में मतभेद हो सकते है पर दोनों की मूल निकासी व उद्ग्म स्थान अमेरिका ही है।

February 23, 2009

हरियाणा में हरित क्रांति




हरित क्रांति व हरियाणा का जन्म लगभग साथ साथ हुआ । मुख्यत उन्नत बीजों ,रसायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के इस्तेमाल पर आधारित इस हरित क्रांति ने सिंचाई सुविधाओं की मदद से फसल उत्पादन में उल्लेखनीय व प्रशंसनीय वृध्दि दर्ज की है। निसंदेह कृषि क्षेत्र में इस तरक्की ने यहाँ के आर्थिक ,औद्योगिक,शिक्षा,स्वास्थ ,यातायात,तकनीक ,संचार,व्यापार आदि क्षेत्रों के विकास में ऐसी बहुआयामी एवं प्रभावशाली भूमिका निभाई कि हरियाणा की गिनती आज विकास की दृष्टि से भारत के ऊपरले राज्यों में होने लगी है। लेकिन यह विकास हरियाणवी जनमानस की तरह सरल व सीधे स्वभाव का नही था। यह अपने साथ अमेरिकन सुंडी व मिलीबग जैसे हानिकारक कीट तथा कांग्रेस घास, मंडुसी व लैंटाना जैसे घातक खरपतवार भी साथ ले कर आया। कपास कीट नियन्त्रण के मैदान में अकेली अमेरिकन सुंडी ने ही सन् 2001 में हमारे इस विकास की ऐसी कड़ लगाई की कि The Tribune को अपने 24 नवम्बर के सम्पादकीय में इस कुश्ती को साझली हार व साझली शर्म के रूप में लिखना पड़ा था। अब इसी मैदान में मिलीबग नाम का कीट अपना लंगोट घुमा रहा है !?!

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