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May 01, 2009

कांग्रेस घास और ब्रुमस बीटल

हाफलो, जी हाँ ! जिला जींद में निडाना, रूपगढ व राजपुरा के किसान इस छोटी सी बीटल को इसी नाम से पुकारते हैं क्योंकि इसके प्रौढ तथा गर्ब दोनों ही हाफले मार-मार कर मिलीबग के शिशुओं को खाते हैं। जबकि सांईसदान इसे कोक्सिनेलिड कुल की ब्रुमस कहते है। इस बीटल के प्रौढ व गर्ब निरामिषि होते हैं। अपना पेट भरने के लिए, इन्हें सारा दिन दुसरे कीट या उनके अंडे ढुन्ढने में ही गुजारना पड़ता है। बहुत सारे कीट या अंडे एक ही जगह खाने को मिल जाए तो, इनके ठाठ हो जाते हैं। ऐसा अवसर, इन्हें मिलीबग के कारण ही मिल पाता है क्योंकि मिलीबग की प्रौढ मादा हर ब्यांत में सैंकडों अंडे एक थैली में देती है। सुरक्षा उपायों के कारण, मिलीबग की मादा इस थैली को अपनी छाती के नीचे रखती है। मिलीबग का पालन-पोषण व प्रजनन कांग्रेस घास व अन्य गैरफसली पौधों पर होना किसानों के लिए अगले जन्म का सचा सौदा बेशक ना हो पर वर्त्तमान में फायदे का सौदा तो जरुर होता है। कांग्रेस घास मिलीबग के लिए कुदरती तौर पर सुरक्षित ठिकाना भी होगा तथा भोजन का स्रोत भी। इसका मतलब मिलीबग के लिए लधने-बढ़ने के भरपूर अवसर। परन्तु जिस तरह से घी मक्खी का बैरी होता है ठीक उसी तरह से जी का जी बैरी होता है। अतः कांग्रेस घास पर मिलीबग का फलना-फुलना मांसाहारी कीटों के लिए सुनहरी मौका होगा और उन्हें भी जीवनयापन व वंशवृद्धि का सुलभ स्रोत मिल जाता है।इस तरह से स्थापित हो जाती है प्रकृति में एक भोजन श्रंख्ला। बस आवश्यकता है तो किसानों द्वारा इस प्रक्रिया को समझने की तथा कीट साक्षरता के नवसाक्षर होने की अन्यथा इस कलयुग में किसी दिन हमारा कृषि-प्रजापति ऑस्ट्रेलिया या जापान से इन बीटलों की अटैची भर कर दिल्ली के हवाई अड्डे पर आसमान से उतरेगा। देश भर के कीट-शंकरों को दिल्ली में फालन करेगा। बी.टी.कपास के भस्मासुर इस मिलीबग से किसानी को मुक्ति दिलवाने के लिए इन बीटलों को अचूक अस्त्र के रूप में उन्हें सौपेगा। जैविक कीट नियंतरण की प्रयोगशालाएं स्थापित होंगीं और शुरू हो जायेंगे इस बीटल को प्रयोगशालाओं में पालने के अनुसंधान। इनके सहारे शुरू हो जायेगी एक नई श्रंखला इन कीट-शंकरों के लिए वेतन-वृद्धियों की, व्यक्तिक-पदोन्नतियों की तथा प्रतीष्ठ पदों को प्राप्त करने की। इन प्रयोगशालाओं में इस बीटल को लेकर धूम-दडाके से बहुअयामी खोजें शुरू होंगीं। इस बीटल के पोषण, प्रजनन व स्थानीय प्रतिक्रिया पर एक या दो सांखिकीय-स्टार लगे ढेरों पेपर छापे जायेंगें। इस प्रक्रिया में, ये मांसाहारी बीटल कीट-शंकरों द्वारा परोसे गए भोजन व प्रयोगशालाओं की सुविधाओं के आदी हो जाते हैं। और फ़िर ये बीटल व परियोजनाए किंतु-परन्तु व समय के साथ दम तोड़ जाती हैं।पर किसानो के खेतों में कहीं नज़र नहीं आती। इसलिए कपास की फसल में इस मिलीबग रुपी चक्रब्यूह को तोड़ने के लिए किसानी अभिमन्यु को ही गुर सिखने होंगें। इसके लिए किसानों को करनी होगी स्थानीय हानिकारक व लाभदायक कीटों की पहचान। जुटानी होगी इनकी भोजन विविधता व क्षमता की जानकारी। जुटानी होगी इनकी प्रजनन क्षमता की

जानकारी।  जुटानी होगी स्थानीय भोजन श्रंखला की जानकारी। 
बाज़ार की इस चक्काचौन्द में इन कीट-शंकरों से कीट-संकट से मुक्ति की आस तो बहुत दूर की बात है यहाँ तो सतयुग में भी पारबती की एक दुखिया किसान के दुःखहरण की प्रार्थना पर शंकर जी ने यह नोट चढा दिया था कि किस-किस के दुःख दूर करैगी, या दुनिया दुखी फिरै रानी।

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